27 Jun 2020 कभी-कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में प्राकृतिक न्याय और साम्या के आधार पर विधि वास्तविक संविदा के समान ही दायित्व किसी व्यक्ति पर अधिरोपित कर देती है, जो की विधिमान्य संविदा नहीं है । अतः संविदा कल्प का वास्तविक और तकनीकि अर्थ से संविदा न होते हुए भी विधि द्वारा संविदा मान लिए जाने से है ।
27 Jun 2020 जब संविदा पक्षकारों पर बंधनकारी नहीं रह जाती तब यह कहा जाता है कि संविदा उन्मुक्त हो गई है । संविदा का उन्मोचन संविदा के पालन द्वारा, करार व नवीनीकरण द्वारा, संविदा भंग द्वारा अथवा पालन की असम्भवता द्वारा हो सकता है ।
27 Jun 2020 “समाश्रित संविदा” की परिभाषा – यह धारा समाश्रित संविदा को परिभाषित करता है जिसके अनुसार समाश्रित संविदा वह संविदा है जो ऐसी संविदा के साम्पार्श्विक किसी घटनाओं के होने या न होने पर किसी बात को करने या न करने के लिए हो ।
27 Jun 2020 जो करार विधि द्वारा प्रवर्तनीय नही होता है उसे शून्य करार कहते हैं । करार धारा 20 के अंतर्गत पक्षकारो के तथ्य सम्बन्धी भूल के होने पर भी शून्य होता है । धारा 23 के अंतर्गत प्रतिफल या उद्देश्य के विधिविरुद्ध होने पर भी करार शून्य होता है वही धारा 56 के अंतर्गत असंभव कार्य करने का करार शून्य होता है, इत्यादि शून्य करार के उदाहरण हैं ।
27 Jun 2020 यदि किसी करार का प्रतिफल या उद्देश्य भारत में प्रवृत्त किसी विधि के प्रतिकूल है तो ऐसा करार शून्य होगा । उदाहरण के लिए यदि ‘A’, ‘B’ को दस हजार रूपये देने का करार इसलिए करता है कि ‘B’, ‘C’ की हत्या कारित कर दे तो ऐसा करार विधिविरुद्ध होने कारण शून्य होगा ।